बुधवार, 7 जुलाई 2010

देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार : नेताओं के लिए यह मुद्दा क्यों नहीं बनता

हमारे नेता कितनी ही बेतुकी बातों और फ़ालतू के मुद्दों को जोर शोर से उठाकर संसद से बहिर्गमन कर जाते हैं. आज तक हमने कभी नहीं सुना कि  भ्रष्टाचार के मुद्दे पर किसी भी राजनितिक दल ने ना तो कोई प्रदर्शन ही किया है और ना ही संसद की कार्यवाही में जोर शोर से उठाया है. जबकि हकीकत यह है कि आज सबसे बड़ा मुद्दा यही है. कितने आश्चर्य की बात है कि भ्रष्टाचार कभी कोई चुनाव का मुद्दा नहीं बन पाया. इसका सबसे बड़ा कारण शायद यही हो सकता है कि नेता स्वयं हर साल हजारों करोड़ रुपयों का घोटाला कर जाते हैं और दूसरे साल फिर से ऐसे घोटाले दोहराने के लिए तैयार हो जाते हैं.
पिछले लोकसभा चुनावों के ठीक पहले श्री आडवाणी जी  ने प्रेस कॉन्फरेंस कर स्विस बैंक का पैसा सत्ता में आते ही सौ दिनों में भारत लाने का वादा  किया था. लेकिन जनता ने उनके दल को सत्ता नहीं सौंपी. कारण स्पष्ट है. जो वस्तु सामने है उसे नहीं लेना और दूर किसी और के घर में रखी खुद की वस्तु के लिए कसमे खाना जनता के  गले उतरा नहीं और बी जे पी चुनाव हार गई. अगर श्री आडवाणी जी भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने का वादा करते तो शायद जनता उन्हें पदासीन भी कर देती. 
कोई भी सरकारी दफ्तर ऐसा नहीं है जहाँ भ्रष्टाचार नहीं होता. लेकिन एक भी नेता या एक भी राजनीतिक दल इसे मुद्दा बनाकर आन्दोलन नहीं करता है.
स्विस बैंक जाने की आवश्यकता नहीं है. अगर भारत देश के तमाम राजनेताओं और सरकारी अफसरों का काला धन भी राष्ट्रीय खजाने में आ जाए तो शायद स्विस बैंक की रकम भी शर्मा जायेगी. लेकिन ईमानदारी से यह काम करेगा कौन?
कहिये आडवाणी जी; क्या आप प्रधानमंत्री बनते ही यह काम करने को तैयार हो जायेंगे?
राहुल जी; देश की जनता को आपे बड़ी उम्मीदें है? क्या आप इस कार्य को अंजाम दे सकते हैं?
ये हमारे देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है. हर सरकारी महकमा केवल रिश्वतखोरी में लगा हुआ है. आप कोई भी विभाग देख लीजिये. सरकार ने भी सभी विभागों की कार्य-प्रणाली और अधिकार ऐसे बनाए हैं कि जनता बिना रिश्वत दिए अपना कोई भी काम करवा ही नहीं सकती. हर सरकारी विभाग के पास अनगिनत अधिकार है. आप किसी से भी नहीं बच सकते. सरकारी कर्मचारियों को अच्छी-खासी तनख्वाह मिलती है. महंगाई भत्ते की समय समय पर किश्तें मिल जाति है.. वेतन आयोग की सिफारिशें भी इन्हें लाभ पहुंचाती है. लेकिन फिर भी रिश्वत इनकी आदत है. इनके हिसाब से रिश्वत जनता के काम करने का शुल्क है. तनख्वाह उन्हें घर से आने और वापस घर जाने के लिए मिलती है.
क्या जनता खुद एकजुट होकर ये काम नहीं कर सकती???????


सोमवार, 5 जुलाई 2010

भारत बंद : नुकसान जनता का नफा नेताओं का

पूरे दिन सभी न्यूज चैनल अपनी अपनी तरह से भारत बंद की व्याख्याएं करते रहे. विपक्ष ने इसे शाम को सफल और ऐतिहासिक बताया वहीँ सत्ता पक्ष ने इसे असफल बताया. विपक्ष के नेताओं ने इसे अंतिम हथियार बताया. उन्होंने कहा कि  जनता को जो असुविधा हुई उसके लिए उन्हें अफसोस है. सत्ता पक्ष ने महंगाई को अपनी तरह से परिभाषित करते हुए अपना पल्ला  झाड़ने की कोशिश की. अभी सभी न्यूज चैनलों पर तमाम नेतागण जोर शोर से चिल्ला चिल्ला कर अपनी बातें कहने में लगे हुए हैं. जो बात सबसे ज्यादा ध्यान देने लायक रही वो यह कि प्रदर्शन कर रहे नेता और कार्यकर्ता टी वी कैमरों के आते ही जोर जोर से चिल्लाने लग जाते और अपने मुंह पर एक विजयी मुस्कान ले आते. ऐसा लग रहा था जैसे वो ये सब टी वी पर आने के लिए कर रहे हैं. उनके चेहरों पर  वास्तविक चिंता कतई नहीं नजर आई. कुल मिलकर आज की नौटंकी काफी मसालेदार रही.

मैं इन सभी नेताओं से चंद सवाल पूछ रहा हूँ. मैं यह जानता हूँ कि कोई भी नेता इन सवालों के जवाब कभी नहीं देगा लेकिन मेरा यह प्रयास तमाम जनता के लिए है  जो इन नेताओं की बातों में आकर अपना कीमती समय बरबाद कर रही है. तमाम दलों के कार्यकर्ता भी इन सवालों को दिल की गहराइयों से पढ़ें ; समझे ; विशलेषण  करें और फिर कोई भी फैसला करें.

१. एक नेता जब किसी दौरे  पर निकालता है तो वो अपने  साथ दसियों गाडीयों का कारवां लेकर निकलता है. पानी की तरह पेट्रोल फूंका जाता है. इसका पैसा कौन देता है? ये हम जनता से ही वसूला जाता है. क्या वो इन यात्राओं पर खर्च होने वाला व्यय खुद वहन करने को तैयार  है?

२. पेट्रोल का दाम ५३/- रुपये प्रति लीटर है. इसमें केन्द्रीय कर ११.८० रुपये है. उत्पाद कर ९.७५ रुपये हैं. राज्य बिक्री कर ८.०० रूपए है और सेस कर ४.०० रुपये है. इसका मतलब यह हुआ कि पेट्रोल की वास्तविक कीमत १६.५० के के आस-पास हुई. आज जो दल विपक्ष में है वो कभी ना कभी सता में रहे हैं. उन्होंने  इस भारी-भरकम करों की राशी को कभी कम करने की कोशिश की. साफ़ है कोई भी दल सता में आए खुद के सांसदों ; मंत्रियों के ऐशो-आराम के लिए इन करों को कम नहीं करना चाहता. क्या आज कोई राजनितिक दल हम सब को ये भरोसा दिला सकता है कि सता में आने पर वो इन टैक्स को कम करेंगे?

३. आज भी इस देश में करोड़ों लोग रोज मजदूरी करते हैं और रोज कमाते हैं . इसी हर दिन की कमाई से उनका चुल्हा जलता है. आज ना जाने कितने लोग भूखे सोयेंगे. कितने बच्चे भूखे पेट बिलख बिलख कर अपने माता-पिता से पूछेंगे  कि आज हम भूखे क्यों सो रहे हैं? क्या आज कोई नेता इस सवाल का जवाब दे सकता है कि इन बच्चों का कुसूर क्या है?

४. कभी भी कोई बंद होता है तो देश की संपत्ति का जमकर नुकसान किया जाता है. बसों को तोडा जाता है; जलाया जाता है. गरीबों  की दुकानों को लूट लिया जाता है. रेलगाड़ियों को रोक लिया जाता है. सड़कों पर अवरोध लगा दिए जाते हैं. कितने ही बीमार व्यक्ति अस्पताल समय पर नहीं पहुँच जाने पर दम तोड़ देते हैं. साक्षात्कार समय पर नहीं पहुँच सकने के कारण कितनों को नौकरी नहीं मिल पाती. कितनी ही शादीयाँ रद्द कर देनी पड़ जाती है. अगर कोई जरुरी काम से कहीं जाना चाहता  है  तो उसके वाहनों को तोड़ दिया जाता है. इन तमाम घटनाओं के टी वी पर आने के बाद सभी दलों के नेता यह कहकर कि ये उनके दल के कार्यकर्ता नहीं बल्कि असामाजिक तत्व थे. कितनी हैरत की बात है कि हम लोग हमारे देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं. अपने ही देश के लोगों को तकलीफ पहुंचा कर खुश हो जाते हैं. क्या कोई नेता ये बताने की कोशिश करेगा कि ऐसा कर के उन्हें क्या हासिल होता है?

५. बंद कर रहे दलों के छुटभय्ये नेता इन प्रदर्शनों को अपनी क्षमता दिखाने का अवसर मानते हैं और जोर शोर से लोगों को तकलीफ पहुंचाकर ; तोड़ फोड़ कर ; पुलिस से हाथापाई  कर और अपनी गिरफ्तारी देकर अपने अपने आलाकमानों से इसके  बदले में आने वाले विभिन्न स्तर के चुनावों के लिए टिकट प्राप्त कर लेते हैं. इसमें असली विरोध कहाँ हुआ. ये तो अपनी अपनी स्वार्थपूर्ति हुई. क्या कोई दल अपने छुटभय्ये नेताओं और कार्यकर्ताओं पर लगाम कसने की गारंटी जनता को दे सकता है?

६. हर बंद के बाद बंद करने वाले दलों के नेता इसे जनता का स्वस्फूर्त समर्थन बता कर जनता के अपने साथ होने की बात करते हैं. हर कोई जानता है कि किस तरह से इन दलों के नेता और कार्यकर्ता जोर-जबरदस्ती से दुकानों और संस्थानों को बंद करवाते हैं. किस तरह से लोगों को पीटा जाता है. धमकीयां दी जाती है. हमला किया जाता है. क्या इन नेताओं की नजर में स्वस्फूर्त समर्थन है? क्या यही जनता का उनको समर्थन है? क्या कोई नेता यह बताएगा कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा?

७. ये नेता उस समय कहाँ चले जाते हैं जब भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी असहाय जनता से जबरन पैसा वसूलते हैं? क्या आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने बढ़ते भ्रस्टाचार  के खिलाफ भारत बंद किया है या करेंगे? 

८. ये नेता उन जमाखोरों को कभी अपना निशाना क्यूँ नहीं बनाते जो महंगाई बढाने का सबसे बड़ा कारण है? कारण साफ़ है इन्ही जमाखोरों से उनके दलों को बेहिसाब चन्दा मिलता है. क्या कोई नेता आज यह वादा करने को तैयार है कि वो इन जमाखोरों को बेनकाब करके ही छोड़ेगा ? 

और भी कितने ही सवाल है. मैं आप सब से भी यही प्रार्थना करना चाहता हूँ कि आप भी अपने मन में उठ रहे ऐसे तमाम सवाल पूछिए मेरे ब्लॉग के माध्यम से. अपने ब्लॉग के माध्यम से. अब जनता को मुखर होकर इन सब का विरोध करना होगा वरना बहुत देर हो जायेगी. नेताओं की झूठी बातों में आकर हम आपस में बंटे नहीं बल्कि एक होकर उन्हें सुधारें और सुधरने को मजबूर करें.
मैं इस नए ब्लॉग के माध्यम से हर कडवे सच को आप तक पहुंचाने का प्रयत्न करूंगा. ये ब्लॉग आप सब के लिए खुला है. आप भी इसे अपना मंच समझिये और अपने लेख मेरे ब्लॉग  पर प्रकाशित कीजिये. मैं सहर्ष आपके हर लेख को प्रकाशित करूंगा. ये आपका अपना ब्लॉग है. आइये इन नेताओं से भारत को बचाइये.